गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

अब न करो इतिहास कलंकित

अब न करो इतिहास कलंकित कल की कालिख मिटने दो
अब न करो बाधित प्रकाश को  कुछ तो अँधियारा छटने  दो

हुआ निरंकुश पशुता यदि,
देवत्व ख़त्म हो जाएगा
शुरू हुआ था जहां से तू 
अपने को वहीं पे पायेगा
रोती मानवता के कुछ दिन हँसते गाते कटने दो 
अब न करो इतिहास कलंकित कल की कालिख मिटने दो

अगर न अब भी संभले तुम
पहचान ही अपनी खो दोगे
धिक्कारेगा आनेवाला कल 
हालत पर उसकी रो दोगे
मानव को मानव रहने दो,  उसका कद ना घटने दो
अब न करो इतिहास कलंकित कल की कालिख मिटने दो

कुछ तो ऐसा करो कि अन्तर
नर पिशाच का बना रहे
कुछ तो ऐसा करो कि कल
आभास स्वर्ग का बना रहे

करो प्रज्वलित दीप एक तुम,  तिमिर के बादल  छँटने दो
अब न करो इतिहास कलंकित कल की कालिख मिटने दो

अब और न हो आहत ममता
मातृत्व न घायल होने पाये
कुछ तो ऐसा करो कि अब  
मुस्कान न शिशु कि खोने पाये

अपनी जननी को तुम अपने ही हाथो मत बँटने  दो
अब न करो इतिहास कलंकित कल की कालिख मिटने दो

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