सावन बरसे भादों बरसे
फिर भी पपिहा जल को तरसे
जनम जनम की प्यास बुझी सब
तुम स्वाती बनकर जब बरसे
चाह मिली अभिशाप सदृश
जीवन चलता संत्रास सदृश
ताप मिटा सब दग्ध हृदय का
तुम लिपटे जब चंदन बनके
नील नयन के वितान तले
अब भोर जगे अब रात ढले
अनुराग लिए मुसकान खड़ा
उतरे मधुमास जो तुम बनके
तुम आन मिले हर फूल हँसा
नयनो में मधुरिम आस बसा
खिंच गया हृदय पर इन्द्रधनुष
चहुँ ओर आज तो रंग बरसे
बुधवार, 18 फ़रवरी 2009
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नील नयन के वितान तले
जवाब देंहटाएंअब भोर जगे अब रात ढले
अनुराग लिए मुसकान खड़ा
उतरे मधुमास जो तुम बनके
सुंदर एहसास लिए हैं यह पंक्तियाँ
वाह!
जवाब देंहटाएंफिर से छायावाद आया ! बधायी !
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar rachana
जवाब देंहटाएंप्रताप जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई\
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसासों से पूर्ण रचना....बेहद अच्छी
जवाब देंहटाएंसावन बरसे भादों बरसे
जवाब देंहटाएंफिर भी पपिहा जल को तरसे
जनम जनम की प्यास बुझी सब
तुम स्वाती बनके जब बरसे
खूबसूरत एहसासों से पूर्ण रचना....बेहद अच्छी
नील नयन के वितान तले
जवाब देंहटाएंअब भोर जगे अब रात ढले
अनुराग लिए मुसकान खड़ा
उतरे मधुमास जो तुम बनके
बहुत सुन्दर और भावभीनी कविता।
bahut sundar likha hai
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना....बधाई।
जवाब देंहटाएंताप मिटा सब दग्ध हृ्दय का तुम लिपटे जब चंदन बन के
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई
Very impressive thoughts, nicely put into easy words, any one can connect with. Your poems take the reader to the beautiful world of lovely dreams and amazing imaginations. Love is as fresh and untouched as “dew drops on flowers before sunrise” in your creations. Good Creativity Pratapji.
जवाब देंहटाएंचाह मिली अभिशाप सदृश
जवाब देंहटाएंजीवन चलता संत्रास सदृश
ताप मिटा सब दग्ध हृदय का
तुम लिपटे जब चंदन बनके
bahut sunder rachna, badhai