बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

जब तुम बरसे

सावन बरसे भादों बरसे
फिर भी पपिहा जल को तरसे
जनम जनम की प्यास बुझी सब
तुम स्वाती बनकर जब बरसे

चाह मिली अभिशाप सदृश
जीवन चलता संत्रास सदृश
ताप मिटा सब दग्ध हृदय का
तुम लिपटे जब चंदन बनके

नील नयन के वितान तले
अब भोर जगे अब रात ढले
अनुराग लिए मुसकान खड़ा
उतरे मधुमास जो तुम बनके

तुम आन मिले हर फूल हँसा
नयनो में मधुरिम आस बसा
खिंच गया हृदय पर इन्द्रधनुष
चहुँ ओर आज तो रंग बरसे

13 टिप्‍पणियां:

  1. नील नयन के वितान तले
    अब भोर जगे अब रात ढले
    अनुराग लिए मुसकान खड़ा
    उतरे मधुमास जो तुम बनके

    सुंदर एहसास लिए हैं यह पंक्तियाँ

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  2. प्रताप जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई\

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  3. खूबसूरत एहसासों से पूर्ण रचना....बेहद अच्छी

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  4. सावन बरसे भादों बरसे
    फिर भी पपिहा जल को तरसे
    जनम जनम की प्यास बुझी सब
    तुम स्वाती बनके जब बरसे
    खूबसूरत एहसासों से पूर्ण रचना....बेहद अच्छी

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  5. नील नयन के वितान तले
    अब भोर जगे अब रात ढले
    अनुराग लिए मुसकान खड़ा
    उतरे मधुमास जो तुम बनके
    बहुत सुन्दर और भावभीनी कविता।

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  6. ताप मिटा सब दग्ध हृ्दय का तुम लिपटे जब चंदन बन के
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई

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  7. Very impressive thoughts, nicely put into easy words, any one can connect with. Your poems take the reader to the beautiful world of lovely dreams and amazing imaginations. Love is as fresh and untouched as “dew drops on flowers before sunrise” in your creations. Good Creativity Pratapji.

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  8. चाह मिली अभिशाप सदृश
    जीवन चलता संत्रास सदृश
    ताप मिटा सब दग्ध हृदय का
    तुम लिपटे जब चंदन बनके

    bahut sunder rachna, badhai

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