छाकर मेरे उर व्योम पर तुम मेघ सा, बरसो ।
तप्त तन मन की धरा को तुम सजल कर दो ।
कंठ को मेरे, सुकोमल निज करों का हार दे दो ।
कर्ण को मेरे, प्रतीक्षित शब्द का उपहार दे दो ।
सुप्त मेरी धमनियों में रक्त का संचार कर दो ,
गर्म अपनी साँस, मेरी साँस में भर दो ।
बेल सी लिपटो, बदन की सख्त शाखों से ।
फैल कर ढँक लो मुझे निज नर्म पाखों से।
मेरे अंतह के मरुस्थल में अक्षय रसधार भर दो ,
मेरे अधरों पर, सरस अपने अधर धर दो ।
मेरी बाहों में बहो जैसे पहाड़ी नद कोई ,
उफनती अति वेग से है पत्थरों को तोड़ती ।
दग्ध तन की भूमि पर अमिय शीतल लेप कर दो,
नर्म जिह्वा की नमी से आज तुम हर रोम भर दो ।
तप्त तन मन की धरा को तुम सजल कर दो !
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एक सधे हुये शब्द शिल्पी की कलम से लिखी गयी सुन्दर रचना आभार्
जवाब देंहटाएंमेरी बाहों में बहो जैसे पहाड़ी नद कोई ,
जवाब देंहटाएंउफनती अति वेग से है पत्थरों को तोड़ती
Sundar shabon mein rachi .......... lajawaab rachnaa hai...
har shabd me milan ki pyas nazar aati hai.
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