तुम्हे देखता हूँ जैसे
मेरे मन मन्दिर में प्रतिष्ठित देवी प्रतिमा
आराधना को आतुर, नतमस्तक मेरा मन
प्रज्वलित किए हुए दीप चाहत की
प्रतिक्षण तुमसे मिलन की
तुम्हारे कोमल स्निग्ध चहरे से टपकती
एक आभा , एक ज्योति पुंज
अनंतकाल तक निहारते रहने की प्रबल इच्छा
महसूस करता हूँ मैं
तुम्हारे कंठ से निकले हर शब्द को
एक श्लोक की तरह
तुम्हारी साँसों से निकलती सरगम में
मुझे सुनाई देती है
प्रतिध्वनि ॐ की
गुरुवार, 25 दिसंबर 2008
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