कब तलक भुस ढेर सा यूँ ही सुलगते जाएँगे
कायरों सा चोट खाते और बिलखते जाएँगे
राजपथ पर रंगरलियों सा समां काफ़ी नही
शत्रु के सीने में कब, बन डर उतरते जाएँगे
अब गलीचों के बिना चलने की आदत डाल लो
कल ज़मीं की ताप से छाले उभरते जाएँगे
ज़ख़्म पर जो लग रहे फिर ज़ख़्म, अब तरजीह दो
सब्र के साए में पक नासूर बनते जाएँगे
अहमियत बस खेल सारा जब तलक है चल रहा
अंत में राजा और प्यादा साथ चलते जाएँगे
फ़र्क क्या पड़ता है ग़र साँसों की गिनती घट गयी
ज़िंदगी गर ना रही लफ़्ज़ों में जीते जाएँगे
कायरों सा चोट खाते और बिलखते जाएँगे
राजपथ पर रंगरलियों सा समां काफ़ी नही
शत्रु के सीने में कब, बन डर उतरते जाएँगे
अब गलीचों के बिना चलने की आदत डाल लो
कल ज़मीं की ताप से छाले उभरते जाएँगे
ज़ख़्म पर जो लग रहे फिर ज़ख़्म, अब तरजीह दो
सब्र के साए में पक नासूर बनते जाएँगे
अहमियत बस खेल सारा जब तलक है चल रहा
अंत में राजा और प्यादा साथ चलते जाएँगे
फ़र्क क्या पड़ता है ग़र साँसों की गिनती घट गयी
ज़िंदगी गर ना रही लफ़्ज़ों में जीते जाएँगे
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