मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

इरादतन मैंने किया

इरादतन मैंने किया; इल्ज़ाम लेने दो
मेरे गुनाहों को मेरा अब नाम लेने दो

चलना अगर आता उफ़क भी पार कर लेता
बैसाखियों को धड़कने तो थाम लेने दो

झुक कर जरा सिर से हटा दो सख्त मिट्टी को
इस बीज को भी इक नया आयाम लेने दो

दुश्वार ना हो जाय, चलना दोपहर में कल
इन गेसुओं से एक कतरा शाम लेने दो

साहिल मिलेगा या भँवर, है बात किस्मत की
बस डूबने वाले को तिनका थाम लेने दो

4 टिप्‍पणियां:

  1. झुक कर जरा सिर से हटा दो सख्त मिट्टी को
    इस बीज को भी इक नया आयाम लेने दो

    खूबसूरत शेर है आपकी ग़ज़ल मैं ........ मुकम्मल .........

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  2. दुश्वार ना हो जाय, चलना दोपहर में कल
    इन गेसुओं से एक कतरा शाम लेने दो
    और फिर
    झुक कर जरा सिर से हटा दो सख्त मिट्टी को
    इस बीज को भी इक नया आयाम लेने दो
    बहुत ही खूबसूरत शेर, भावपूर्ण और नाज़ुक

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  3. आज का दिन बहुत अच्छा है ...........

    सब जगह बेहतरीन रचनाएं मिल रही हैं

    आपकी ग़ज़ल के हर शे'र में एक अनूठापन है .........भा गया.........मन को भा गया.........इसलिए मज़ा आ गया


    वाह !
    चलना अगर आता उफ़क भी पार कर लेता
    बैसाखियों को धड़कने तो थाम लेने दो

    क्या बात है..अभिनन्दन !

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  4. दुश्वार ना हो जाय, चलना दोपहर में कल
    इन गेसुओं से एक कतरा शाम लेने दो !!!

    Waah ! waah ! waah ! Lajawaab ! behtareen gazal !!

    Yun to har sher hi lajawaab hai par isme jo bimb aapne prayukt kiya...waah !! bas waah !!

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