गुरुवार, 16 जुलाई 2009

एक नज़्म

मेरा प्यार तुम, मेरी जान तुम, तुम ही तो हो मेरी जिन्दगी।
मेरे हमनफस तेरे साए में, पलती है मेरी हर खुशी।

शब-ए-गम लिए था मैँ चल रहा सूने सफर में अब तलक,
तुम आ मिली सरे राह जो, छायी फिजाँ में रोशनी।

तेरे इश्क की परछाइयाँ, मेरे ज़ख्म-ए -दिल को सूकून दें,
तेरी जुल्फ की नम छाँव में, शामो सहर मेरे शबनमी !

मेरे दिल की सच्ची इबादतें, और रब की मुझ पे इनायतें,
मेरे ख्वाब में थी जो पल रही, मेरे बाजुओं में आ बसी !

तेरे रुख पे उनका जमाल हो, तेरी रूह उनसे निहाल हो,
यह रूप ही तेरा चाहिए , मुझे हर जनम में ऐ जिन्दगी !

6 टिप्‍पणियां:

  1. तेरे इश्क की परछाइयाँ, मेरे ज़ख्म-ए -दिल को सूकून दें,
    तेरी जुल्फ की नम छाँव में, शामो सहर मेरे शबनमी !
    kya baat hai,bahut sunder

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  2. वाह वाह वाह !!!! लाजवाब !!

    बहुत ही सुन्दर नज्म,पढ़ते समय पूरी तरह ले बना रहा....

    सच कहा आपने,जिन्दगी इतनी खुशगवार हो तो फिर क्यों न इसे इसी रूप में हर जनम में पाने की ख्वाहिश की जाय.

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  3. तेरे इश्क की परछाइयाँ, मेरे ज़ख्म-ए -दिल को सूकून दें,
    तेरी जुल्फ की नम छाँव में, शामो सहर मेरे शबनमी !

    सुन्दर नज्म,..

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