शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

अंतहीन संघर्ष

एक अजगर
एक प्रेत
और एक गिद्ध

तीनो ही
जन्म लेते हैं
आदमी के साथ ही
आदमी के भीतर ही

अजगर,
जो भी पाता है
खा जाता है
उम्र भर खाता रहता है
परन्तु
सदा ही भूखा रहता है

प्रेत,
भिन्न भिन्न आकृतियाँ गढ़ता है
सारी उम्र डराता है
रचाता है अनेकों ढोंग
इधर उधर भगाता है

गिद्ध,
बार बार गडाता है
अपनी नुकीली चोंच
शरीर में
सारी उम्र पीड़ा देता है

आदमी
बार बार उठता है
अपने पौरुष को टटोलता है
कमर कसता है
लडता है
किंतु

कभी भी पार नहीं पाता है .

2 टिप्‍पणियां:

  1. विभिन्न प्रवृत्तियों को बिलकुल समुचित बिम्बों द्वारा व्यक्त किया गया है !....एक अजगर.....
    .....एक प्रेत.....और एक गिद्ध......सचमुच !
    दूसरी बात की इस तरह कहने का सहज एवं सपाट ढ़ग और भी अच्छा लगता है !

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  2. बेहतरीन बिम्ब इस्तेमाल किए हैं-उम्दा अभिव्यक्ति!

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