गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

आ जाओ

शाम हो चुकी है
सूरज कब का क्षितिज के पार जा चुका है
फूलों की पंखुडियां बंद होने लगी हैं
पक्षी अपने घोसलों में जा चुके हैं
नदी की लहरों पर
चाँदनी बिखरी हुयी हैं मोतियों की तरह
टिमटिमाते सितारों से भरे इस नीरव आसमान के नीचे
मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ तुम्हारी
अपनी नाव पर
आकर बैठो मेरे पास कुछ देर
मेरे हृदय को सुनने दो
तुम्हारी निःशब्द बातें
और मेरी आंखों को छू लेने दो
इन मद्धिम हवाओं में लहराते
तुम्हारे घुंघराले केश
चाँदनी में नहाया तुम्हारा स्निग्ध चेहरा
तुम्हारी आंखों में तैरता असीम स्नेह।

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