१।
वह मेरी
वक्रता लिए
कलात्मक बातों को
नही समझ पाती है
शब्दों में जड़े
रूपको और अलंकारों को
नही जान पाती है
फिर भी
जब मेरा लिखा पढ़ती है
उसकी आँखें बड़ी बड़ी हो जाती हैं
माथे पर गर्व
आंखों में प्रेम
चेहरे पर मुस्कराहट फैल जाती है
और मुझे
सबसे बड़ी दाद मिल जाती है।
२।
शाम,
जब न दिन होता है न रात
न तो पूरा अँधेरा होता है
और न ही पूरा उजाला
क्यों इतनी प्रिय लगती है ?
क्या इसलिए कि हम
कुछ देख पाने का सुख पाते हैं
और कुछ न देख पाने का
कौतूहल मन में बसाते हैं
वह मेरी
वक्रता लिए
कलात्मक बातों को
नही समझ पाती है
शब्दों में जड़े
रूपको और अलंकारों को
नही जान पाती है
फिर भी
जब मेरा लिखा पढ़ती है
उसकी आँखें बड़ी बड़ी हो जाती हैं
माथे पर गर्व
आंखों में प्रेम
चेहरे पर मुस्कराहट फैल जाती है
और मुझे
सबसे बड़ी दाद मिल जाती है।
२।
शाम,
जब न दिन होता है न रात
न तो पूरा अँधेरा होता है
और न ही पूरा उजाला
क्यों इतनी प्रिय लगती है ?
क्या इसलिए कि हम
कुछ देख पाने का सुख पाते हैं
और कुछ न देख पाने का
कौतूहल मन में बसाते हैं
भई वाह !! बहुत सुंदर अभिव्यक्तियाँ हैं ...ऎसे ही लिखते रहें ..बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा और वाकई मासूम!!
जवाब देंहटाएं3rd one is very nice...
जवाब देंहटाएंप्रताप जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे भावों वाली सुंदर रचना बधाई
जब मेरा लिखा पढ़ती है
जवाब देंहटाएंउसकी आँखें बड़ी बड़ी हो जाती हैं
माथे पर गर्व
आंखों में प्रेम
चेहरे पर मुस्कराहट फैल जाती है
और मुझे
सबसे बड़ी दाद मिल जाती है।
बहुत मासूमियत है इन पंक्तियों में ..जाने आने का फर्क साफ़ पता लगने लगता है ..सुंदर भाव हैं
सहज सुंदर निर्व्याज -
जवाब देंहटाएंबढ़ चला है स्नेह का घनत्व ! ! ! !
अद्वितीय !
वाह ! वाह ! वाह ! बस वाह !!!
जवाब देंहटाएंक्या भाव ,क्या अभिव्यक्ति,सब अतिसुन्दर,सीधे मन में उतर जाने वाली..
komal bhavnaen aur sahaj abhivykti.Bahut achche.
जवाब देंहटाएं... प्रसंशनीय रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी सभी कवितायें बहुत अच्छी लगीं , इनमें वफ़ा की खुशबू है |
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