मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

पल भर को तुम मुड़कर तकना

अंतिम पल हैं; जाते जाते
पल भर को तुम मुड़कर तकना

आँसू के कुछ कतरे तन पर
ओस सरीखे पड़े हुए हैं
फूल तुम्हारे मुस्कानों के
अंग हमारे जड़े हुए हैं
सपनों के नन्हे नन्हे से
कितने पौधे खड़े हुए हैं
कभी किसी एकाकी पल में
जिनको बोया मेरे अँगना
पल भर को तुम मुड़कर तकना

कभी मिलन में हुए उल्लसित
प्रियतम को बाहों में भरकर
कभी विरह में रोया तुमने
मेरे काँधों पर सिर रखकर
खोने पाने औ सुख दुःख का
रहा सदा साक्षी मैं हर पल
आज मेरी अंतिम बेला में
जाते तुम, पल एक ठिठकना
पल भर को तुम मुड़कर तकना

नव वर्ष तुम्हारा हो मंगलमय
मैं अतीत हो जाऊँगा
कालचक्र के महाजलधि के
अंतह में सो जाऊँगा
कभी किसी अलसाए पल में
याद तुम्हें जो आऊँगा
नाम मेरा अधरों पर अपने
मुसकाकर हौले से धरना
पल भर को तुम मुड़कर तकना

7 टिप्‍पणियां:

  1. सारे वर्ष इसी कवि‍ता सा कुछ कहते हैं;;; खूबसूरत बयान।

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  2. आँसू के कुछ कतरे तन पर
    ओस सरीखे पड़े हुए हैं
    फूल तुम्हारे मुस्कानों के
    अंग हमारे जड़े हुए हैं
    सपनों के नन्हे नन्हे से
    कितने पौधे खड़े हुए हैं
    कभी किसी एकाकी पल में
    जिनको बोया मेरे अँगना
    पल भर को तुम मुड़कर तकना


    Adwiteey rachna.....WAAH !!! Man mugdh ho gaya isk sundar pranaygeet kee soumyta par....
    Bhavon ko abhootpoorv abhivyakti di hai aapne....

    Aise hi sundar geet rachte rahen....Nav varsh mangalmay ho...

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  3. याद तुम्हें जो आऊँगा
    नाम मेरा अधरों पर अपने
    मुसकाकर हौले से धरना
    पल भर को तुम मुड़कर तकना

    बढ़िया भावपूर्ण रचना .. बधाई

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  4. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना है। बधाई।

    कभी किसी अलसाए पल में
    याद तुम्हें जो आऊँगा
    नाम मेरा अधरों पर अपने
    मुसकाकर हौले से धरना
    पल भर को तुम मुड़कर तकना

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  5. बेहतरी रचना के लिए
    बहुत -२ आभार

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