सोमवार, 26 जनवरी 2009

कैसे प्रणय का राग गाऊँ

प्रिय कहो कैसे प्रणय का राग गाऊँ ?

भूख से आक्रांत बच्चे की कहीं से
बिलखती , हिय चीरती
आवाज आती है ।
अश्रु भर कर लोचनों में,
क्षीण जर्जर गात ले
फिर कहीं तो माँ कोई
पानी पकाती है ।
उस करुण चीत्कार को,
उन आँसुओं की धार को मैं भूलकर
बोल अपने गीत के कैसे सजाऊँ?

प्रिय कहो कैसे प्रणय का राग गाऊँ?

हड्डियों तक को कँपाती सर्द रातों में,
बैठ कोई व्योम के नीचे
लिपटकर चीथड़े में
काँपता,
सिर को धँसाकर बीच घुटनों के,
रात आँखों में लिए वह जूझता
बर्फ से ठंडे थपेडों से,
टकटकी बाँधे हुए पूर्वी क्षितिज पर
कर रहा मनुहार रवि की
प्रथम किरणों का,
काँपती उस देह को मैं भूलकर
किस तरह सितार में झंकार लाऊँ?

प्रिय कहो कैसे प्रणय का राग गाऊँ?

जोंक सी चिपटी हुयी निज जिंदगी को,
खींचता है चल रहा
चार पहियों पर कोई .
देखता गलते हुए अपनी उंगलियाँ व्याधि से,
बिलबिलाता दर्द से तन के,
जलन ढोता क्षुधा का।
चुनौती देता सकल पुरुषार्थ को,
अस्पृश्य
वह वीभत्सता कटाक्ष करती
मनुज के सौंदर्य पर ।
सड़ती हुयी उस जिंदगी के चित्र को
मानस पटल से ,खुरचकर
कैसे तुम्हारे रूप का मैं गान गाऊं ?

प्रिय कहो कैसे प्रणय का राग गाऊँ ?

काटकर मानव गला नृशंसता से ,
मद भरा, मत-अंध मानव
रक्त से स्नान कर
करता हुआ अभिषेक
दानव का अहम् के,
मनुजता के वक्ष पर रख पैर
तांडव कर रहा
भर रहा हुँकार प्रतिपल।
चीरती जो गर्म लावे की तरह
कर अनसुनी उसको
कहो मैं किस तरह बंशी बजाऊँ ?

प्रिय कहो कैसे प्रणय का राग गाऊँ ?

गा नही सकता प्रणय का गान मैं।
भर रहा मन आर्त नादो से
करुण चीत्कार से
बेधता है हृदय को वह दानवी हुँकार।
खो नही मैं पा रहा इन नर्म बालों में,
ढल नही है पा रहा
सौन्दय अनुपम
बोल बनकर मेरे गीतों में।
है नही उठ पा रहा संगीत कोई
आज इस चंचल हँसी से।
बुझ रहा यह दीप मैं कैसे जलाऊं ?

प्रिय कहो कैसे प्रणय का राग गाऊँ ?

जा रहा मैं

पास उन कातर स्वरों के,
लौटकर कब आ सकूँगा
यह नही मै जानता
पर सुनो,
जब देखना भूखा कोई
भरपेट खाकर मुस्कराए,
सोचना मैं लिख रहा हूँ गीत
तुम्हारे लिए।
जब देखना कि दीन कोई सो सके
गात ढककर , नीद भरकर,
समझना मैं कस रहा
वीणा के तारों को।
और जब मिलते हुए तुम देखना सौहार्द्र से
दो व्यक्तियों को भिन्न मत के ,
समझना संगीत मेरा बज रहा ।
और जब तुम देख पाओगी कहीं मुझको
मरहम लगाते दूसरों के घाव पर,
उस समय जब मुस्कराओगी,
प्रणय का राग फूटेगा स्वतः
मेरे अन्तह में कहीं ,
घुलकर हवाओं में तुम्हारे पास आएगा ।
जल उठेगा दीप फिर
खिल उठेगा पुष्प सा
राग तब वह एक नया आयाम पायेगा ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. जल उठेगा दीप फिर
    खिल उठेगा पुष्प सा
    राग तब वह एक नया आयाम पायेगा ।

    -बहुत भावपूर्ण..सुन्दर रचना.

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  2. हर वार की तरह इस वार भी अति सुंदर!!!!

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  3. जब देखना भूखा कोई
    भरपेट खाकर मुस्कराए,
    सोचना मैं लिख रहा हूँ गीत
    तुम्हारे लिए।
    जब देखना कि दीन कोई सो सके
    गात ढककर , नीद भरकर,
    समझना मैं कस रहा
    वीणा के तारों को।
    और जब मिलते हुए तुम देखना सौहार्द्र से
    दो व्यक्तियों को भिन्न मत के ,
    समझना संगीत मेरा बज रहा ।


    Waah ! Waah ! Waah !
    Atisundar,bhaavpoorn man mugdh karti is rachna hetu sadhuwaad.

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  4. कैसे प्रणय का राग गाऊँ ?
    बहुत सुंदर और सशक्त रचना !

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