चारो तरफ ही अब मुझे महताब दिखता है
गैहान उनके नूर से आबाद दिखता है
कहर-ए-खिजाँ से सूखकर सहरा हुआ था जो
गुलशन ज़माने बाद वो, शादाब दिखता है
हूँ सामने मैं , अक्स पर उनका दिखाता है
इस आइने का भी अजब अंदाज़ दिखता है
जो है जमाने के लिए बस बूँद पानी की
पलकों तले मोती उन्हें नायाब दिखता है
ये जीस्त गुजरे, मौत आये, बस तेरे दर पे
दिन रात मुझको बस यही इक ख्वाब दिखता है
बुधवार, 27 मई 2009
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जो है जमाने के लिए बस बूँद पानी की
जवाब देंहटाएंपलकों तले मोती उन्हें नायाब दिखता है
लाजवाब ग़ज़ल............हर शेर कमाल का
प्रताब जी,
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग पढ़ा, बहुत ही साहित्यिक एवं अनुपम है...
लेकिन मैं अनुसरण नहीं कर पाया...
Beautiful!!
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