चाँद, परियों से जुदा, किस्सा-बयानी और है
इस में राजा है न रानी, ये कहानी और है
नींद में चलते हुए ठोकर लगी, जाना तभी
ख्वाब तो कुछ और थे, पर जिंदगानी और है
आईने पर, लौटकर बाज़ार से, डाली नज़र
यूँ लगा यह तो नहीं सूरत पुरानी, और है
धड़कने, आहें, कसक, आँसू , तराने सब वही
पर सभी आशिक कहें- "मेरी कहानी और है"
लग रहा ये आ रहीं छूकर तेरे रुख़सार को
आज इन मादक हवाओं की रवानी और है
हो गयीं आँखें तुम्हारी नम अभी, ऐ हमनफ़स !
सिर्फ यह शुरुआत थी आगे कहानी और है
इस में राजा है न रानी, ये कहानी और है
नींद में चलते हुए ठोकर लगी, जाना तभी
ख्वाब तो कुछ और थे, पर जिंदगानी और है
आईने पर, लौटकर बाज़ार से, डाली नज़र
यूँ लगा यह तो नहीं सूरत पुरानी, और है
धड़कने, आहें, कसक, आँसू , तराने सब वही
पर सभी आशिक कहें- "मेरी कहानी और है"
लग रहा ये आ रहीं छूकर तेरे रुख़सार को
आज इन मादक हवाओं की रवानी और है
हो गयीं आँखें तुम्हारी नम अभी, ऐ हमनफ़स !
सिर्फ यह शुरुआत थी आगे कहानी और है
मत उतारो काठ की नावें नदी में साथियों !
जवाब देंहटाएंउठ रहे शोले धधकते, आज पानी "और है"
धड़कने, आहें, कसक, आँसू , तराने सब वही
पर सभी आशिक कहें- "मेरी कहानी और है"
लाजवाब पूरी रचना बहुत अच्छी है बधाई
"नींद में चलते हुए ठोकर लगी, जाना तभी
जवाब देंहटाएंख्वाब तो कुछ और थे पर जिंदगानी "और है" "
अच्छा है !......वो कहते हैं न ....वाह !!!!
कृपया इधर भी तो देखें.. www.srijangatha.com
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