तुम्हारा होना
मन को गुदगुदाता है
सर्दियों की गुनगुनी धूप की तरह
चूमता है मेरे मस्तक को
गर्मियों के भोर की ठंडी हवाओं की तरह
भिगोता है मेरे बदन को
सावन की मादक फुहारों की तरह
लिपट जाता है मुझसे
बार बार, एक मासूम शिशु की तरह
मैं देखता हूँ
शरद के पूरे चाँद को
उतरते हुए हृदय- आकाश पर ।
गुरुवार, 1 जनवरी 2009
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