कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
त्राण सदृश, अस्तित्व तुम्हारा, मुझको ढँक लेता है
दुःख, चिंता के हर प्रवेग को बाधित कर देता है
प्राणों को कर प्रणय सिन्धु, सुख की तरिणी खेता है
मेरे हिय की हर पीड़ा का
पल में क्षय तुम कर देती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
नेह तुम्हारे नयनों से मृदु निर्झर सा झरता है
हृदय-धरा के कण कण को यह प्रेम सिक्त करता है
धुल जाती धारों से रस के सारी उन्मनता है
उर-धरणी पर निर्मल शीतल
सुख-सरिता सी तुम बहती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
सुरभित मंद झकोरों सा है अनिल स्वाँस का बहता
मेरी साँसों में भरता है मलयज की शीतलता
लुप्त म्लानता पल में करती है इसकी मादकता
मन मेरा उपवन बन जाता
तुम ऋतुराज बनी होती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
घेरे में कोमल बाहों के , मन सुध-बुध खोता है
मंजुल स्वप्नों से आच्छादित प्रणय जगत होता है
क्लेश व्यग्रता कब कोई भी हर्षित मन ढ़ोता है
निज प्राणों को मेरे प्राणों
के आँगन में बो देती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
अंतर्मन से उठकर, भावों के अक्षर आते हैं
मुखमंडल के स्निग्ध पृष्ठ पर, जुड़ते वे जाते हैं
प्रेम गीत, अधरों पर शब्दों के, कुछ लहराते हैं
मैं तन्मय पाठक होता हूँ
तुम जीवन-कविता होती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
त्राण सदृश, अस्तित्व तुम्हारा, मुझको ढँक लेता है
दुःख, चिंता के हर प्रवेग को बाधित कर देता है
प्राणों को कर प्रणय सिन्धु, सुख की तरिणी खेता है
मेरे हिय की हर पीड़ा का
पल में क्षय तुम कर देती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
नेह तुम्हारे नयनों से मृदु निर्झर सा झरता है
हृदय-धरा के कण कण को यह प्रेम सिक्त करता है
धुल जाती धारों से रस के सारी उन्मनता है
उर-धरणी पर निर्मल शीतल
सुख-सरिता सी तुम बहती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
सुरभित मंद झकोरों सा है अनिल स्वाँस का बहता
मेरी साँसों में भरता है मलयज की शीतलता
लुप्त म्लानता पल में करती है इसकी मादकता
मन मेरा उपवन बन जाता
तुम ऋतुराज बनी होती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
घेरे में कोमल बाहों के , मन सुध-बुध खोता है
मंजुल स्वप्नों से आच्छादित प्रणय जगत होता है
क्लेश व्यग्रता कब कोई भी हर्षित मन ढ़ोता है
निज प्राणों को मेरे प्राणों
के आँगन में बो देती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
अंतर्मन से उठकर, भावों के अक्षर आते हैं
मुखमंडल के स्निग्ध पृष्ठ पर, जुड़ते वे जाते हैं
प्रेम गीत, अधरों पर शब्दों के, कुछ लहराते हैं
मैं तन्मय पाठक होता हूँ
तुम जीवन-कविता होती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास मेरे प्रिय तुम होती हो
मैं तन्मय पाठक होता हूँ
जवाब देंहटाएंतुम जीवन-कविता होती हो
क्या खूब लिखा है आपने. बहुत खूबसूरत श्रृंगार बहुत दिनो बाद रूबरू हुआ.
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं"मैं तन्मय पाठक होता हूँ
जवाब देंहटाएंतुम जीवन-कविता होती हो
कितना अच्छा होता है जब
पास हमारे तुम होती हो"
सचमुच .....बहुत सुन्दर ....! !! इस प्रकार के बिम्ब आपकी कविता में अनेक ढ़ग से अनेक रूपों में बड़े रम्य स्वरूप में उपस्थित है !