ऐसा नहीं कि तेरी दुआ में असर नहीं
शब ही हमारी ऐसी कि जिसकी सहर नहीं
जो बिन खिले ही फूल कभी शाख से गिरे
किस्मत यही थी उनकी, खिजा का कहर नहीं
मैं जानता था, राह में दरिया है आग का
बेबस बहुत चला था, मगर बेखबर नहीं
इल्जाम आज देता तुम्हे बेवफाई का
इजहार-ए-इश्क तुमने किया था मगर नहीं
मरता नहीं है कोई किसी के बिना कभी
इतना ही बस कि, दिल में खुशी का बसर नहीं
पहुँचेगा कारवाँ ये कभी तो मुकाम पे
ना खत्म हो कभी, कोई ऐसा सफ़र नहीं
शब ही हमारी ऐसी कि जिसकी सहर नहीं
जो बिन खिले ही फूल कभी शाख से गिरे
किस्मत यही थी उनकी, खिजा का कहर नहीं
मैं जानता था, राह में दरिया है आग का
बेबस बहुत चला था, मगर बेखबर नहीं
इल्जाम आज देता तुम्हे बेवफाई का
इजहार-ए-इश्क तुमने किया था मगर नहीं
मरता नहीं है कोई किसी के बिना कभी
इतना ही बस कि, दिल में खुशी का बसर नहीं
पहुँचेगा कारवाँ ये कभी तो मुकाम पे
ना खत्म हो कभी, कोई ऐसा सफ़र नहीं
मरता नहीं है कोई किसी के बिना कभी
जवाब देंहटाएंइतना ही बस कि, दिल में खुशी का बसर नहीं
सही कहा ..बहुत अच्छा लिखा है आपने
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंमैं जानता था, राह में दरिया है आग का
जवाब देंहटाएंबेबस बहुत चला था, मगर बेखबर नहीं
-बहुत बेहतरीन!! उम्दा!!
चोट सह सह कर ये पत्थर हो चुका
जवाब देंहटाएंदिल पे अब नश्तर चलाना छोड़ दे ||
......waah,bahut hi badhiyaa
पहुँचेगा कारवाँ ये कभी तो मुकाम पे
जवाब देंहटाएंना खत्म हो कभी, कोई ऐसा सफ़र नहीं
बहुत सुन्दर. आभार.
पहुँचेगा कारवाँ ये कभी तो मुकाम पे
जवाब देंहटाएंना खत्म हो कभी, कोई ऐसा सफ़र नहीं
प्रताप जी
बहुत खूब लिखा भाई
हर शेर अलग अलग andaj का खूबसूरत है
मैं जानता था, आग का दरिया है राह में
जवाब देंहटाएंबेबस बहुत चला था, मगर बेखबर ....
-बहुत बेहतरीन!!
....भुला सका न वो सिलसिला जो हुआ ही नही.......इजहार-ए-इश्क तुमने किया था मगर नहीं.......!
जवाब देंहटाएं..
जानदार ग़ज़ल...बहुत अच्छी लगी...बधाई.
जवाब देंहटाएंदिव्य नर्मदा के लिए रचनाएं 'सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम पर भेजिए.