मेरे मस्तक पर उभरता मान हो तुम!
मेरे प्राणों का सतत उत्थान हो तुम !
मेरे होने का निरंतर भान देता,
चेतना में स्वाँस भरता, गर्व तुम हो !
प्रिये! मेरा दर्प तुम हो !
मेरे अंतह की सकल तुम कामना हो!
मेरे जीवन की अखंडित साधना हो!
ज्वार सी उठती हृदय के सिन्धु में जो,
भावनाओं का मेरे उन्मान तुम हो!
प्रिये ! मेरी माँग तुम हो!
मेरी साँसों में बसा मधुमास हो तुम !
मेरी आँखों में सजा उल्लास हो तुम !
इन्द्रधनुषी प्रणय की अँगनाइयों में,
विहँसती फिरती सदा; मन-मीत तुम हो !
प्रिये! मेरी प्रीत तुम हो !
मेरी वीणा की मधुर झंकार हो तुम !
मेरे बोलों का सुचिंतन सार हो तुम !
जल तरंगों सा उभरता प्राण से जो,
हृदय में है गूँजता; संगीत तुम हो !
प्रिये! मेरा गीत तुम हो !
मेरे जीवन को मिला; वह सत्य हो तुम !
मेरे अंतह में पला; शिव तत्व हो तुम !
मोहता जो नित नया आयाम लेकर,
आँख में भरता; वो सुन्दर रूप तुम हो !
प्रिये ! मेरा पूर्ण तुम हो !
शुक्रवार, 19 जून 2009
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ek bahut hi sundar bhaawa ..........pyaar ek maan samaan abhimaana kyaa baat kahi hai aapane ............aapki kawita ka koee jabaaw nahi.......bahut hi komal our maasoom abhiwyakti
जवाब देंहटाएंप्यार की सुन्दर अभिव्यक्ति............. कोमल, सात्विक रचना है हर चाँद लाजवाब लिखा है......... samarpan का shudh bhaav लिए
जवाब देंहटाएंप्रेम की यह पवित्र सौम्य अभिव्यक्ति मंत्र मुग्ध कर गयी.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रवाहमयी प्रेम गीत रची आपने...साधुवाद..
बहुत सुन्दर व बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
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