जीवन भर
हम पुनरावृत्ति करते हैं
शब्दों की,
भावनाओं की,
क्रियाओं की,
और गढ़ते हैं
नई बातें...नई कविताएँ,
नए आकर्षण...नए रिश्ते,
नए संसाधन...नए प्रयोजन,
निरंतर...पूरे उत्साह से.
ऐसा नहीं कि
पुनरावृत्ति नीरस और उबाऊ नहीं होती...
..................होती है...
किन्तु, तब तक नहीं
जब तक
उससे नवीनता जनमती है.
शुक्रवार, 27 जनवरी 2012
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बहुत सही कहा है ..
जवाब देंहटाएंसच कहा - जो पहले से विद्यमान है उसी से नव-निर्माण की प्रक्रिया -नई रचना, संपन्न होती है !
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने.........
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