गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

आत्मसात

तुम वही हो
जिसे देखा था मैंने
बचपन की परी -कथाओं में
जिसे सुना था गाते हुए
अमराइयों में
जिसे पाया था मुस्कराते हुए
फूलों में
जिसे छुआ था
गंगा की लहरों में
जिसे महसूस किया था
किशोरावस्था की
उन्नीदी आंखों में
तुम वही हो
जिसे ढूँढता रहा उम्र भर
जिसे सोचता रहा हर पल
तुम मेरी ही आत्मा का
एक टुकडा हो

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