गुरुवार, 22 जनवरी 2009

स्वप्न

कल नीद में
मन स्वप्न कोई बुन रहा था,
यूँ लगा
मैं चाँदनी में बैठ तुमको सुन रहा था।

कूल था कालिन्दि का वह ,
और जिसके पत्र से थी छन रही
शुभ्र उज्जवल चन्द्रिका,
कदम्ब का वह वृक्ष
दिखता अति सुनहरा था।

झर रहे थे पुष्प बनकर
शब्द अधरों से तुम्हारे,
रोपता मन
अंजली में हर सुमन
बाहें पसारे,
और देता अर्घ्य नयनो को ,
उमड़ता नेह जिनमे
दीखता ,
सागर सा गहरा था ।

छू रहा था पवन चंचल
उष्ण करता
मुख मेरा,
बह रहा था बाहु में भर
मद भरा उच्छ्वास तेरा,
और छूता पुनः जाकर
केश घुंघराले तुम्हारे,
बिखरते उड़ते लटों से
स्निग्ध मुखमंडल घिरा था।

दूर तक फैले हुए
रव-हीनता को भंग करती ,
अंक में अपने सरित
भर झिलमिलाते मोतियों से
रश्मि पुंजों को,
उल्लसित हो नाद करती
गान मंगल गा रही थी ।
चिर प्रतीक्षारत खड़ा
वह वृद्ध तरु,
अति नेह से
था पत्र वर्षा कर रहा ,
ज्यों दे रहा पुष्पांजली
अपने मिलन पर।
देखता विस्तृत नयन से
मन में कौतूहल लिए,
क्षणों के नन्हे करों की
नर्म ऊँगली थामकर,
उस कूल पर कालिन्दि के
आ समय ठहरा था ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. कल नीद में
    मन स्वप्न कोई बुन रहा था,
    यूँ लगा
    मैं चाँदनी में बैठ तुमको सुन रहा था।
    Its very beautiful.Imaginative. Nicely narrated.
    Awesome Job.

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  2. बहुत सुंदर. इसके अतिरिक्त क्या कहू. आभार.

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  3. सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद स्वीकारें....

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  4. bahut acchhey..झर रहे थे पुष्प बनकर
    शब्द अधरों से तुम्हारे,
    रोपता मन
    अंजली में हर सुमन
    बाहें पसारे,

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  5. बहुत अच्‍छे भाव....सुंदर अभिव्‍यक्ति..

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  6. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  7. Respected Pratap ji,
    Bahut hee sundar shabdon men achchhe bhavon kee abhivyakti.
    Gantantra divas kee hardik mangalkamnayen.

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  8. गणतंत्र दिवस की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं

    http://mohanbaghola.blogspot.com/2009/01/blog-post.html

    इस लिंक पर पढें गणतंत्र दिवस पर विशेष मेरे मन की बात नामक पोस्‍ट और मेरा उत्‍साहवर्धन करें

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  9. कल नीद में
    मन स्वप्न कोई बुन रहा था,
    यूँ लगा
    मैं चाँदनी में बैठ तुमको सुन रहा था।
    Bhot sunder rachna......!

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