जब तुम्हारे वज़्म से मैं लौटकर आया
खो गया था, रूह को कुछ ढूँढते पाया
करवटें लेता रहा दिन रात पलकों में
मेरी नजरों से तुम्हारा भींगता साया
बैठ जातीं आरजूएं डाल कर डेरा
राह खुशियों की यही है कौन भरमाया
बेकहल सब हो गयीं हैं धड़कने, साँसें
ज्वार सी उठतीं कि कोई चाँद उग आया
सैर कर आती पलों में आसमानों की
आस को उड़ना जमाने बाद है आया
शनिवार, 21 फ़रवरी 2009
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बैठ जातीं आरजूएं डाल कर डेरा
जवाब देंहटाएंराह खुशियों की यही है कौन भरमाया
बेकहल सब हो गयीं हैं धड़कने, साँसें
ज्वार सी उठतीं कि कोई चाँद उग आया
वाह बहुत सुन्दर।
waah har sher lajawaab
जवाब देंहटाएंसैर कर आती पलों में आसमानों की
जवाब देंहटाएंआस को उड़ना जमाने बाद है आया
वाह प्रताप जी
बहुत ही सुंदर कल्पना, सुंदर उड़ान है आपकी
करवटें लेता रहा दिन रात पलकों में
जवाब देंहटाएंमेरी नजरों से तुम्हारा भीगता साया
बहुत खूब प्रताप जी...बहुत अच्छा लिखा है आपने...
नीरज
बहुत सुंदर ग़ज़ल. क्या खूब लिखते हैं आप भी. आभार.
जवाब देंहटाएंbahut hi behtareen rachna........
जवाब देंहटाएंsair kar aati paloN mei aasmano ki
जवाब देंहटाएंaas ko urna zmaane baad hai aaya
bahut khoob....
classic ideas...
bahut mn-bhaavan rachna...
---MUFLIS---
प्रेम की ऐसी गहन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति पर कुछ शब्दों की क्या प्रतिक्रया दी जाय यह मेरी समझ में बिलकुल भी नही आता ! प्रतिक्रिया के नाम प्रतिक्रिया दे देना कुछ ज्यादा कठिन नही है लेकिन यह एक प्रकार से उस गूढ़ एकांत अनुभूति की गरिमा की मूढ़ अवहेलना लगती है , खासकर कविता के परिपेक्ष्य में !
जवाब देंहटाएंकरवटें लेता रहा दिन रात पलकों में
जवाब देंहटाएंमेरी नजरों से तुम्हारा भींगता साया
बढ़िया कहा आपने सुंदर अभिव्यक्ति
Absolutely lovely. Cannot find right words for its appreciation. Simplicity of expressions are magnetic and leaves mark on the reader instantly. Exceptional work Pratapji.Carry on.
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