बीत गए हैं कितने ही दिन, बिन देखे ही तुमको
उठती है इक हूक हृदय में हर पल चुभता कुछ तो
मेरे सारे बोल पिया रूठे बैठे हैं।
राग जिया के सारे साज समेटे सोये
कुम्हलाया है अधर बिना मुस्कान सजाये
नैना सजल निरंतर रात लपेटे रोये
कौन जतन कर, आओ जब तुम, ना जाने दूँ तुमको,
उठती है इक हूक हृदय में हर पल चुभता कुछ तो
हर क्षण गुज़रे बन कंटक कदमो से मेरे
राह तुम्हारी तकती साजन साँझ-सवेरे
बिलखे मेहा, फूल झरे, सब पत्ते टूटे
तुम्हे पुकारे साजन, वाणी मेरी ऐसे
हिया बिलापे ऐसी बिरहन बना गए तुम मुझको
उठती है इक हूक हृदय में हर पल चुभता कुछ तो !
मन ऐसे मचले की जैसे शिशु कोई हो
मुखडा तेरा ज्यों उसका हो एक खिलौना
बहलूँ मचलूँ जीलूँ जिसे हाथ में लेके
बोलो मेरे प्राण पिया बस तुम ही हो ना!
मुझे बिलखता छोड़ गए क्यों दया न आई तुमको !
उठती है इक हूक हृदय में हर पल चुभता कुछ तो
बदरी तुम्हरे ठाँव न मेरी याद दिलाती?
पवन संदेसे लेके तुम्हरे द्वार न पहुंचा?
ऐसे कैसे सूरज ढलता सांझ द्वार पर !
चाँद न कहता बात मेरी कुछ झाँक झरोखा?
जल थल नभ सब बने उलाँकी दिए न दस्तक तुमको?
उठती है इक हूक हृदय में हर पल चुभता कुछ तो
जैसे मोड़े मुँह बैठा मुस्कान अधर से
बोलो मेरे प्रीतम क्या तुम उन जैसे हो?
सुधि ना ली जो कितने प्रहर उदासी बीते
कहो पिया क्या तुम मुझको भूले बैठे हो?
जो ऐसी हो बात साँस से बंधन तोडूँ फिर तो
उठती है इक हूक हृदय में हर पल चुभता कुछ तो
कल जो आओगे तुम साजन, सम्मुख मेरे
प्राण करेगा अगुवाई तेरी आँगन में
बिखरी जितनी, चुन चुन कर मैं अंग लगूँगी
थामे रखना अपने बाहों के बंधन में
प्रेम रीत में धीरज कैसा ! समझा देना मुझको,
उठती है इक हूक हृदय में हर पल चुभता कुछ तो
बुधवार, 27 मई 2009
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जैसे मोड़े मुँह बैठा मुस्कान अधर से
जवाब देंहटाएंबोलो मेरे प्रीतम क्या तुम उन जैसे हो?
सुधि ना ली जो कितने प्रहर उदासी बीते
कहो पिया क्या तुम मुझको भूले बैठे हो?
ह्रदय में टेस उठाता गीत, लय, छंद में और सुर और ताल में गाया जा सकता है ये मधुर गीत..............लाजवाब है
"मन ऐसे मचले की जैसे शिशु कोई हो"
जवाब देंहटाएंप्रिय- विरह में मन का शिशु जैसा मचलना कुछ विचित्र नहीं लगता क्या ?
ये पंक्तिया बहुत सुन्दर लगी ---
जवाब देंहटाएं"नैना सजल निरंतर रात लपेटे रोये"
"प्रेम रीत में धीरज कैसा ! समझा देना मुझको,"
उठती है इक हूक हृदय में हर पल चुभता कुछ तो