घिर आये हैं मेरे
बादल सुभाग के
साँवले सलोने से।
कन्ठ से उभरते हैं
सातों सुर एक साथ
झंकृत हो उठता है
अन्तः का तार तार।
अधरों पर खेलती
मोहक-अति चंचला
भरती है राह में
किरणे समुज्ज्वला।
सघन हो बरसते हैं
अमृत के बूँद बूँद
मन का पपीहा
अघाए बिन
पीता है रात दिन.
बादल सुभाग के
साँवले सलोने से।
कन्ठ से उभरते हैं
सातों सुर एक साथ
झंकृत हो उठता है
अन्तः का तार तार।
अधरों पर खेलती
मोहक-अति चंचला
भरती है राह में
किरणे समुज्ज्वला।
सघन हो बरसते हैं
अमृत के बूँद बूँद
मन का पपीहा
अघाए बिन
पीता है रात दिन.
वाह ! वाह ! वाह ! अतिसुन्दर भावाभिव्यक्ति......
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया...aabhaar...
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसंतृप्त प्रांजल मन में प्रकीर्णित शीतलता सहज ही अभिव्यक्त हुयी है ! ऊपर वाली गजल से ज्यादा सुन्दर लगी यह कविता |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
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