मेरा प्यार तुम, मेरी जान तुम, तुम ही तो हो मेरी जिन्दगी।
मेरे हमनफस तेरे साए में, पलती है मेरी हर खुशी।
शब-ए-गम लिए था मैँ चल रहा सूने सफर में अब तलक,
तुम आ मिली सरे राह जो, छायी फिजाँ में रोशनी।
तेरे इश्क की परछाइयाँ, मेरे ज़ख्म-ए -दिल को सूकून दें,
तेरी जुल्फ की नम छाँव में, शामो सहर मेरे शबनमी !
मेरे दिल की सच्ची इबादतें, और रब की मुझ पे इनायतें,
मेरे ख्वाब में थी जो पल रही, मेरे बाजुओं में आ बसी !
तेरे रुख पे उनका जमाल हो, तेरी रूह उनसे निहाल हो,
यह रूप ही तेरा चाहिए , मुझे हर जनम में ऐ जिन्दगी !
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
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तेरे इश्क की परछाइयाँ, मेरे ज़ख्म-ए -दिल को सूकून दें,
जवाब देंहटाएंतेरी जुल्फ की नम छाँव में, शामो सहर मेरे शबनमी !
kya baat hai,bahut sunder
pyaar kuchh isi tarah ki minnat karata hai .....sundar
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह !!!! लाजवाब !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नज्म,पढ़ते समय पूरी तरह ले बना रहा....
सच कहा आपने,जिन्दगी इतनी खुशगवार हो तो फिर क्यों न इसे इसी रूप में हर जनम में पाने की ख्वाहिश की जाय.
तेरे इश्क की परछाइयाँ, मेरे ज़ख्म-ए -दिल को सूकून दें,
जवाब देंहटाएंतेरी जुल्फ की नम छाँव में, शामो सहर मेरे शबनमी !
सुन्दर नज्म,..
sunder
जवाब देंहटाएंlajawaab rachnaa hai........ khoobsoorat likha
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