गुरुवार, 6 अगस्त 2009
दोहे -प्रेम और श्रृंगार के
अन्दर मेरे तुम प्रिये , बाहर तुम ही होय
जित देखूँ तित तू दिखे , और न दूजा कोय
मैं तो, अब मैं ना रहा, तुम-मय भीतर वाह्य
तेरा ही मन प्रान प्रिये , जब से कन्ठ लगाय
अंध कूप में था पड़ा, लिये सघन अँधियार
अमिट उजाला छा गया, झाँके वे इक बार
तम ही तम फैला रहा, अवनि और आकाश
जग उँजियारा हो गया , मिलिया प्रेम-प्रकाश
तुमसे ही तो हर ख़ुशी , तुमसे ही सब नेह
जब चितवत हो तुम मुझे , बरसत मधु का मेह
पास सदा ही वे रहें , चाहे मन बेचैन
उनको ही देखा करुँ , आठ पहर दिन रैन
बैठ अटारी दोपहर , गोरी खोले केश
सोचे यह मन बाँवरा , साँझ भई इह देश
गोरी भींगे केश जो , फेरे है छिटकाय
टपके रिमझिम बूँद, यों , बरसत घन इतराय
अलकों में है घन बसा , साँसन मधुर सुवास
चितवन में अनुराग है , अधरन में मधु मास
चंदा चमके व्योम पर , चंदा अँगना सोय
दुइ दुइ चंदा देख के , हृदय मयूरा होय
देखन जब उनको लगा , और न देखन जाय
देख देख छवि सुमुखि की, प्यासे नैन अघाय
प्रिय की अति चंचल हँसी, कल कल सरित प्रवाह
हिय को आह्लादित करे, मिटे सकल दुःख दाह
बातें जब वो बोलती , झरन लगे हैं फूल
रोपे मन भर अंजुली , अर्घ्य देय हिय कूल
गोरी बैठी आँगना , देखन में सकुचाय
देख अँगूठी बीच छवि, मन ही मन मुसकाय
मन मेरा यह बाँवरा, वश में मोरे नाय
बैठ रहा उस ठौर, तुम ,जहाँ लिए लिपटाय
लिपटी हो तुम बेल सी , ऊँगली डोलत केश
चंचल लोचन राग का, देते हैं सन्देश
झरते हो तुम इस तरह , जैसे झरती ओस
साँसे घुलती साँस में , खोता जाता होश
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सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंbehad khubsoorat dohe .......shabd our bhaw utkrisht hai ....
जवाब देंहटाएंबढिया दोहे हैं.
जवाब देंहटाएंdoha sunder hai
जवाब देंहटाएंeke do din ma apne kveeta bhajugi
renu juneja ,jaipur
BAHOOT HI LAJAWAAB DOHE HAIN SAB NAYE ANDAAZ KE....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअन्दर मेरे तुम प्रिये , बाहर तुम ही होय
जवाब देंहटाएंजित देखूँ तित तू दिखे , और न दूजा कोय
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