गम नहीं जो राह में मेरी, गुलों का घर नहीं है ।
बस्तियाँ काँटों की हैं, और हाथ में नश्तर नहीं है ।
है अजब ही खेल ऐ मौला ! तुम्हारा इस जहां में,
डूबता कोई, किसी को बूँद तक मयस्सर नहीं है ।
ज़िन्दगी! तू क्यों भला फिर से उन्हें दुहरा रही है
पास मेरे जिन सवालों का कोई उत्तर नहीं है ।
इश्क औ' मरजाद दोनों ही, सनम! कैसे निभेगी ?
है हथेली में तेरे पर नाम माथे पर नहीं है ।
हो सकेगी गुफ्तगू भी अब भला कैसे हमारी
अब वहाँ, उस झील के तट पे, कोई पत्थर नहीं है ।
बस्तियाँ काँटों की हैं, और हाथ में नश्तर नहीं है ।
है अजब ही खेल ऐ मौला ! तुम्हारा इस जहां में,
डूबता कोई, किसी को बूँद तक मयस्सर नहीं है ।
ज़िन्दगी! तू क्यों भला फिर से उन्हें दुहरा रही है
पास मेरे जिन सवालों का कोई उत्तर नहीं है ।
इश्क औ' मरजाद दोनों ही, सनम! कैसे निभेगी ?
है हथेली में तेरे पर नाम माथे पर नहीं है ।
हो सकेगी गुफ्तगू भी अब भला कैसे हमारी
अब वहाँ, उस झील के तट पे, कोई पत्थर नहीं है ।
गम नहीं कि राह में मेरी, गुलों का घर नहीं है ।
जवाब देंहटाएंबस्तियाँ काँटों की हैं, पर हाथ में नश्तर नहीं है ।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,बधाई ।
हो सकेगी गुफ्तगू भी अब भला कैसे हमारी
जवाब देंहटाएंअब वहाँ, उस झील के तट पे, कोई पत्थर नहीं है
vaah ... lajawaab ग़ज़ल है, umda sher
Bahut sundar gazal kahee hai aapne.
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )