चाँद चलै नहि रात कटै, यह सेज जलै जइसे अगियारी
नागन सी नथनी डसती, अरु माथ चुभै ललकी बिंदिया री !
कान का कुण्डल जोंक बना, बिछुआ सा डसै उँगरी बिछुआ री !
मोतिन माल है फाँस बना, अब हाथ का बंध बना कँगना री !
काजर आँख का आँस बना, अरु जाइके भाग के माथ लगा री !
हाथ की फीकी पड़ी मेंहदी, अब पाँव महावर छूट गया री !
काहे वियोग मिला अइसा, मछरी जइसे तड़पे है जिया री !
आए पिया नहि, बीते कई दिन, जोहत बाट खड़ी दुखियारी .
नागन सी नथनी डसती, अरु माथ चुभै ललकी बिंदिया री !
कान का कुण्डल जोंक बना, बिछुआ सा डसै उँगरी बिछुआ री !
मोतिन माल है फाँस बना, अब हाथ का बंध बना कँगना री !
काजर आँख का आँस बना, अरु जाइके भाग के माथ लगा री !
हाथ की फीकी पड़ी मेंहदी, अब पाँव महावर छूट गया री !
काहे वियोग मिला अइसा, मछरी जइसे तड़पे है जिया री !
आए पिया नहि, बीते कई दिन, जोहत बाट खड़ी दुखियारी .
अति सुंदर।
जवाब देंहटाएं………….
दिव्य शक्ति द्वारा उड़ने की कला।
किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?
सुन्दर रचना बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति भाषा, लय,प्रवाह,उन्माद,विरह औए मर्म सब कुछ एक साथ!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना बधाई
जवाब देंहटाएंlaazawaab kavita ka yah roop abhi bhi surkashti hathon me hai...dekh kar bahut achha laga... behad shandar
जवाब देंहटाएंbahot khoob bade bhai ji hardik badhai
जवाब देंहटाएंaap varavasi se hai to....shiv ko samarpit ...
जवाब देंहटाएं"मत्तगयंद सवैया"
दूर करैं सब कष्ट महा प्रभु ,जाप करो शिव शंकर नामा !
जो नर ध्यान धरै नित शंकर ,ते नर पावत शंकर धामा !!
ध्यान लगाय भजो नित शंकर ,लालच मोह सबै तजि कामा !
जो भ्रमता भव बंधन में तब,पावत ना वह जीव विरामा !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"