पंथ यह
मधुमय नहीं,
पुष्प पल्लव से सदा
रहता है आच्छादित नहीं.
यदि कंटकों की हो प्रचुरता,
पंथ मत तज
उठ सतह से !
चल पवन के संग तू.
निर्मल सदा
होता नहीं है हर सरोवर,
पंक मिश्रित अम्बु हो यदि,
श्वास लेना हो जो दुष्कर ,
मत्स्य मत बन
उठ सतह से !
खिल जा कमल बन.
तू मलयगिरी की
सुवासित गंध बन.
इन्द्रधनु बनकर
चला स्यंदन गगन के भाल पर.
उज्ज्वल बने प्रत्येक कण
स्पर्श से,
हो जा प्रकीर्णित
भोर की पहली किरन बन.
पंथ यह मधुमय नहीं
उठ सतह से
चल पवन के संग तू
खिल जा कमल बन
हो जा प्रकीर्णित
भोर की पहली किरन बन
मधुमय नहीं,
पुष्प पल्लव से सदा
रहता है आच्छादित नहीं.
यदि कंटकों की हो प्रचुरता,
पंथ मत तज
उठ सतह से !
चल पवन के संग तू.
निर्मल सदा
होता नहीं है हर सरोवर,
पंक मिश्रित अम्बु हो यदि,
श्वास लेना हो जो दुष्कर ,
मत्स्य मत बन
उठ सतह से !
खिल जा कमल बन.
तू मलयगिरी की
सुवासित गंध बन.
इन्द्रधनु बनकर
चला स्यंदन गगन के भाल पर.
उज्ज्वल बने प्रत्येक कण
स्पर्श से,
हो जा प्रकीर्णित
भोर की पहली किरन बन.
पंथ यह मधुमय नहीं
उठ सतह से
चल पवन के संग तू
खिल जा कमल बन
हो जा प्रकीर्णित
भोर की पहली किरन बन
बहुत सुन्दर सन्देश और प्रेरणा देती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंPratap bhaiya thanks for this wonderful motivational poem.
जवाब देंहटाएं