बंशी की टेर उठे नदिया के तीर
मन में जगाए
अनजानी सी पीर
बंशी की टेर उठे नदिया के तीर
नावों के पाल फटे
हहराती लहर उठे
आज हैं हवाएँ क्यों
इतनी अधीर
बंशी की टेर उठे नदिया के तीर
बदरी ने चाँद हरा
मनवा में स्याह भरा
आँखें चकोर की
बरसाएँ नीर
बंशी की टेर उठे नदिया के तीर
ररुही ने राग भरे
असगुन ने पाँव धरे
विरहन की आह उठे
जियरा को चीर
बंशी की टेर उठे नदिया के तीर
मधुर धुन सुनाई देने लगी
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंलोक-गीतों का माधुर्य समेटे सरस टेर समाई है इस गीत में !
जवाब देंहटाएंकिसी बड़े महाकाव्य या खण्ड काव्य का अंश लग रही है कविता !
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