मत हवा दो, अध-बुझी चिंगारियाँ जल जाएँगी
आग जो भड़की दिलों में, पीढ़ियाँ जल जाएँगी
ख़ुद-परस्ती की शमाँ से यूँ न घर रोशन करो
बेगुनाहों की बहुत सी बस्तियाँ जल जाएँगी
यूँ न फेंको प्यार के दरिया में नफरत की मशाल !
लग गई जो आग सारी कश्तियाँ जल जाएँगी
बैठ ऊँची कुर्सियों पर आग में डालो न घी
गर लपट ऊँची उठी तो कुर्सियाँ जल जाएँगीसब्र से सेंको, चिता की आग के सौदागरों !
आँच गर ज्यादा करोगे रोटियाँ जल जाएँगी
बेहतरीन पंक्तियां हैं प्रताप जी।
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक शब्द ..अनेकों.. पर आपत्ति है।
अनेक शब्द अपने आपमें बहुवचन है। अनेकों जैसा कोई शब्द नहीं है।
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं"आग जो भड़की दिलों में, पीढ़ियाँ जल जाएँगी"
जवाब देंहटाएं"बैठ ऊँची कुर्सियों पर आग में डालो न घी
गर लपट ऊँची उठी तो कुर्सियाँ जल जाएँगी"
कुर्सियां तो जलनी ही है एक दिन !