गुरुवार, 13 मई 2010

आँचल माँ का


हर शै थी अन्जान यहाँ

मैं सिर्फ जानता आँचल माँ का
उन नन्ही आँखों की धरती,
आसमान था आँचल माँ का

हर पीड़ा, दुःख, डर मिट जाता
उस वितान के नीचे आकर
बचपन के माथे पर उभरा
हर गुमान था आँचल माँ का

तरुणाई की आँखों में जब
सपनों के अंकुर फूटे
उनके पोषण हेतु हवा, जल
और उजास था आँचल माँ का

हास-व्यथा, उल्लास-हताशा
एक साथ थे यौवन पथ पर
स्नेहिल हाथों से, मन का
हर भाव थामता आँचल माँ का

जग के रीति-रिवाजों में
परिपक्व हुआ मैं किन्तु अभी भी
फाँस कोई चुभती जब दिल में
दर्द ढूँढता आँचल माँ का

कैसे माँ की छवि, ममता, -
व्यक्तित्व सभी का गान करूँ
मेरे सारे शब्दों में भी
नहीं समाता आँचल माँ का

6 टिप्‍पणियां:

  1. कैसे माँ की छवि, ममता, -
    व्यक्तित्व सभी का गान करूँ
    मेरे सारे शब्दों में भी
    नहीं समाता आँचल माँ का
    ....sach mein Maa ke anchal ki koi thah nahi...
    ...Maa ki mamtamayee sundar prasuti ke liye bahut dhanyavaad..

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  2. कैसे समायेगा शब्दों में मां का आंचल .....वह इतना छोटा थोड़े ही है ...शब्दों की क्या औकात !!!!!!
    "जग के रीति-रिवाजों में
    परिपक्व हुआ मैं किन्तु अभी भी
    फाँस कोई चुभती जब दिल में
    दर्द ढूँढता आँचल माँ का"
    ये पंक्तिया ज्यादा अच्छी लगीं !

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  3. मैं भी बहुत दिनों से व्यस्त ही था ! इण्टरनेट से एक दम दूर . इसलिये यहां का कुछ पढ़ नहीं पा रहा था ! इग्जाम्स वगैर थे !
    हां ! बीच बीच में याद आ जा रहा था कि कुछ छूट रहा है जिसे करना है ! देखना, पढ़ना है ! लेकिन कर नहीं पा रहा था !

    अब ठीक है !

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