शुक्रवार, 25 जून 2010

आह पे क्यों इतना हंगामा हुआ है

जाने गुलशन की फ़िज़ा को क्या हुआ है
आज तो हर फूल ही सहमा हुआ है

अब दरीचों से महज हम देखते हैं
चाँदनी में भींगना सपना हुआ है

आसमाँ में उड़ रहे उजले कबूतर

रास्तों पे सुर्ख़ रंग बिखरा हुआ है

रात आँचल में छुपा लेती है वर्ना
धुल न पाता, स्याह जो चेहरा हुआ है


ज़ख्म है तो दर्द होना लाज़मी है
आह पे क्यों इतना हंगामा हुआ है

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचना बहुत सुन्दर है...
    आपको अपने ब्लॉग में फ़ॉलोवर्स का विज़ेट जोड़ना चाहिए, ताकि आपके ब्लॉग को फ़ॉलो किया जा सके...

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  2. अब दरीचों से महज हम देखते हैं
    चाँदनी में भींगना सपना हुआ है
    समझ नहीं आता की किस तरह से तारीफ़ करूँ. दिल के बहुत करीब जा बैठी है ये ग़ज़ल . बस एक ही शब्द है बेमिसाल!!!!!

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