जाने गुलशन की फ़िज़ा को क्या हुआ है
आज तो हर फूल ही सहमा हुआ है
अब दरीचों से महज हम देखते हैं
चाँदनी में भींगना सपना हुआ है
आसमाँ में उड़ रहे उजले कबूतर
रास्तों पे सुर्ख़ रंग बिखरा हुआ है
रात आँचल में छुपा लेती है वर्ना
धुल न पाता, स्याह जो चेहरा हुआ है
धुल न पाता, स्याह जो चेहरा हुआ है
ज़ख्म है तो दर्द होना लाज़मी है
आह पे क्यों इतना हंगामा हुआ है
आपकी रचना बहुत सुन्दर है...
जवाब देंहटाएंआपको अपने ब्लॉग में फ़ॉलोवर्स का विज़ेट जोड़ना चाहिए, ताकि आपके ब्लॉग को फ़ॉलो किया जा सके...
अब दरीचों से महज हम देखते हैं
जवाब देंहटाएंचाँदनी में भींगना सपना हुआ है
समझ नहीं आता की किस तरह से तारीफ़ करूँ. दिल के बहुत करीब जा बैठी है ये ग़ज़ल . बस एक ही शब्द है बेमिसाल!!!!!