सोमवार, 16 मई 2011

एक राग-मय सुबह

कितना मोहक यह प्रभात !

पूर्व क्षितिज स्मित-कंचन
निर्झर में वाणी-गुंजन
इन्द्रधनुष तेरी चितवन

हँसी बिखरती पात पात
कितना मोहक यह प्रभात !

प्रेम-पवन अति उच्छॄंखल
राग-सरित बहती कल कल
चहुँ-दिश फैली ज्योति नवल

सुख सागर अतिशय उदात्त
कितना मोहक यह प्रभात !

रोम रोम मेरा मधु सिक्त
तार तार हिय का झंकृत
हर सूक्ष्म -स्थूल तुमसे आवृत

लहराता मन-प्राण-गात
कितना मोहक यह प्रभात !

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