रविवार, 4 दिसंबर 2011

सुखदतम यह होता है

सुखदतम यह नहीं होता कि
हम किसी की कल्पनाओं के अनुरूप स्वयं को ढ़ाल लें
और उसके मन-मंदिर में प्रतिष्ठित हो जाएँ.
सुखदतम यह होता है कि
किसी की कल्पनाओं का स्वरुप हमारे जैसा हो जाए
और वह हमें अपने मन-मंदिर में बसा ले
सारे गुण-दोषों के साथ.

सुखदतम यह नहीं होता कि
शुभ्र ज्योत्सना से आच्छादित पुष्प कुञ्ज में बैठ
हम अपने प्रिय के मुखमंडल की धवलता अपनी आँखों में भरें .
सुखदतम यह होता है कि
जब अमावस की रात में हम उसे देखें
दसों दिशाएँ धवल हो जाएँ,
उसके चेहरे के उल्लास से...उसकी आँखों की चमक से.

सुखदतम यह नहीं होता कि
हमारे जीवन पथ पर बस पुष्प ही बिछे हों
और हम उनकी कोमलता तथा सुवास में डूब कर चलते चले जाएँ.
सुखदतम यह होता है कि
हमारी राह का हर कंटक
हमारे नेह-जल से कोमल हो जाए,
हमारे मधुर-स्पर्श से सुवासित हो उठे.

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