जो कुछ भी तुम्हें देता हूँ
उसे रख लिया करो चुपचाप
मत सोचा करो कभी
उसके प्रतिदान के बारे में .
क्योंकि
मेरा हर दिया गया
तुमसे ही उपजता है
पहले मुझे भरता है
फिर उमड़कर तुम तक पहुँचता है.
सोमवार, 9 जनवरी 2012
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तुम आई,
मेरी सुबह अरुणिम
और रातें रुपहली हो गईं
हवाएँ सुगन्धित हो उठीं
साँझ इन्द्रधनुषी हो गई
अच्छा हुआ जो तुम आई
अन्यथा
कितना कुछ
आँखों की पुतलियों पर
मात्र एक कल्पित-बिम्ब सा रह जाता
जीवन कितना खूबसूरत होता है
मैं कभी नहीं जान पाता.
बहुत सुन्दर भाव ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... कम शब्दों में गहरी बात ...
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