मंगलवार, 4 मई 2010

ये चाँद जो उजला दिखता है

ये चाँद जो उजला दिखता है
बस तेरी नज़र का धोखा है

है सारी उमर बहता रहता
आँखों में कहीं इक दरिया है

पहचान इन्हें कैसे होगी
हर आँख चढ़ा इक चश्मा है

तू देख के दाना चुगना रे !
वो जाल बिछाए बैठा है

हर रात बिताता आँखों में
यह शहर भी मुझ सा तनहा है

जीने की उसे है चाह बहुत
मरने की दुआ जो करता है

इसका भी तो हक़ है पलकों पर
यह अश्क़ भी मेरा अपना है

मत शोर मचा, जग जाएगा
अब ख़्वाब बहुत ही मँहगा है

जब इश्क़ चढ़े फिर ना उतरे
यह रंग बहुत ही गहरा है

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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  2. "जीने की उसे है चाह बहुत
    मरने की दुआ जो करता है"
    अक्सर ऐसा होता है !

    कुछ पन्क्तियों के अर्थ एकदम अलग अलग लग रहे है ! उनमें कोई तारतम्य खोजना थोड़ा कठिन हो रहा है ! फिर से देखता हूं !

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