रावण कभी भी तो न मारा जा सका
बस गात ही खंडित हुआ था
वाण से श्रीराम के.
वह प्रतिष्ठत है युगों से मनुज के भीतर,
सदा पोषित हुआ
आहार, जल पाकर
निरंकुश कामनाओं, इन्द्रियों का.
राम कोई चाप लेकर
खड़ा भी होता अगर है
लक्ष्य सारा-
मारना रावण सदा ही दूसरे का.
स्वयं का रावण विहँसता
खड़ा अट्टहास करता दसो मुख से,
सहम जाता राम
धन्वा छूट जाती है करों से.
यत्न सारा
विफल होता ही रहा
संहार का दससीस के.
बस प्रतीकों पर चलाकर वाण
है अर्जित किया उल्लास के कुछ क्षण मनुज ने.
किन्तु जब तक राम सबके
उठ खड़े होते नहीं संहार को
प्रथम अपने ही दशानन के,
सतत उठती रहेगी
गूँज अट्टहास की,
सहमते यूँ ही रहेंगे राम
विहँसता रावण रहेगा सर्वदा.
बस गात ही खंडित हुआ था
वाण से श्रीराम के.
वह प्रतिष्ठत है युगों से मनुज के भीतर,
सदा पोषित हुआ
आहार, जल पाकर
निरंकुश कामनाओं, इन्द्रियों का.
राम कोई चाप लेकर
खड़ा भी होता अगर है
लक्ष्य सारा-
मारना रावण सदा ही दूसरे का.
स्वयं का रावण विहँसता
खड़ा अट्टहास करता दसो मुख से,
सहम जाता राम
धन्वा छूट जाती है करों से.
यत्न सारा
विफल होता ही रहा
संहार का दससीस के.
बस प्रतीकों पर चलाकर वाण
है अर्जित किया उल्लास के कुछ क्षण मनुज ने.
किन्तु जब तक राम सबके
उठ खड़े होते नहीं संहार को
प्रथम अपने ही दशानन के,
सतत उठती रहेगी
गूँज अट्टहास की,
सहमते यूँ ही रहेंगे राम
विहँसता रावण रहेगा सर्वदा.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
गहन अभिव्यक्ति......
जवाब देंहटाएंकिन्तु जब तक राम सबके
जवाब देंहटाएंउठ खड़े होते नहीं संहार को
प्रथम अपने ही दशानन के,
सतत उठती रहेगी गूँज अट्टहास की,
सहमते यूँ ही रहेंगे राम
विहँसता रावण रहेगा सर्वदा.
बिलकुल सही बात कही सर!
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‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है
गहन भावो का समावेश ..बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन... सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंसादर...
किन्तु जब तक राम सबके
जवाब देंहटाएंउठ खड़े होते नहीं संहार को
प्रथम अपने ही दशानन के,
सतत उठती रहेगी गूँज अट्टहास की,
सहमते यूँ ही रहेंगे राम
विहँसता रावण रहेगा सर्वदा.
बहुत सुन्दर ! गहन अभिव्यक्ति ! सार्थक चिंतन !
बहुत गहन और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंgahan ...aur sarthak rachna ...
जवाब देंहटाएंbadhai.
किन्तु जब तक राम सबके
जवाब देंहटाएंउठ खड़े होते नहीं संहार को
प्रथम अपने ही दशानन के,
सतत उठती रहेगी गूँज अट्टहास की,
सहमते यूँ ही रहेंगे राम
विहँसता रावण रहेगा सर्वदा.
bahut sundar aur sarthak rachna